Friday, July 5, 2019

स्व-अधिसूचना पर आपत्ति

बलूचिस्तान हाई कोर्ट के अलावा वो सिंध हाई कोर्ट, सुप्रीम कोर्ट और शरीअत कोर्ट में पेश हुए थे जबकि कई बार अदालत में बतौर एमिकस क्यूरी (मददगार) भी तलब किए गए. वो बलूचिस्तान और सिंध हाई कोर्ट के अलावा सुप्रीम कोर्ट के सदस्य तो रहे लेकिन बार काउंसिल की सक्रिय सियासत से दूर रहे.
क़ाज़ी फ़ाएज़ ईसा जनहित याचिका भी दायर करते रहे जबकि बैंकिंग, पर्यावरण और सिविल लॉ में इनकी महारत है. वो वर्ल्ड बैंक और एशियन डेवलपमेंट बैंक के पदों पर क़ानूनी सहायक रहे हैं. इन पदों में कराची मास ट्रांजिट, हाइवे फाइनैंसिंग एंड ऑपरेशन, बलूचिस्तान ग्राउंड वाटर रिसोर्सेज़ शामिल हैं.
बलूचिस्तान हाई कोर्ट में बतौर जज तैनात होने से पहले वो अंग्रेज़ी अख़बारों में संविधान और क़ानून, इतिहास और पर्यावरण पर विश्लेषणात्मक लेख भी लिखते थे. इसके अलावा 'मास मीडिया लॉ एंड रेगूलेशन' के सह-लेखक, 'बलूचिस्तान केस एंड डिमांड' के भी लेखक हैं.
सुप्रीम कोर्ट ने क्वेटा बम धमाके की जांच के लिए एक कमीशन का गठन किया, जिसकी अध्यक्षता क़ाज़ी फ़ाएज़ ईसा को दी गई थी. साल 2016 में क्वेटा सिविल अस्पताल में आत्मघाती हमले में 70 लोगों की मौत हुई थी.
कमीशन ने अपनी रिपोर्ट में सिक्योरिटी संस्थाओं के कामों पर सवाल उठाए और साथ में चरमपंथी संगठनों की सरगर्मियों पर भी चिंता व्यक्त की. कमीशन ने रिपोर्ट में कहा था कि सरकार आतंकवाद के ख़ात्मे के क़ानून पर पालन करते हुए चरमपंथियों और उनके संगठनों को तुरंत प्रतिबंधित करे.
कमीशन ने नेशनल एक्शन प्लान को मुनासिब तरीक़े से लागू करने की ज़रूरत पर ज़ोर देने के साथ आतंकवाद से मुक़ाबले की बनी संस्था नेक्टा के ख़राब प्रदर्शन की आलोचना की थी.
कमीशन ने उस वक़्त के संघीय आंतरिक मंत्री चौधरी निसार से चरमपंथी संगठन अहले सुन्नत और अल-जमाअत के सरबराह अल्लामा यूसुफ़ लुधियानवी से मुलाक़ात पर भी सवाल उठाया था.
चौधरी निसार का कहना था कि वो पाकिस्तान डिफेंस काउंसिल के प्रतिनिधिमंडल के साथ आए थे जिसकी अध्यक्षता मौलाना समीउल हक़ कर रहे थे. चौधरी निसार ने आरोपों को निजी क़रार दिया था. सरकार ने कमीशन की रिपोर्ट पर संशोधन के लिए आवेदन दायर करने का ऐलान किया.
सुप्रीम कोर्ट की फुल कोर्ट ने जब 2015 में चीफ़ जस्टिस नासिर अलमक की अध्यक्षता में फौजी अदालतों की स्थापना के हक़ में फ़ैसला दिया तो जस्टिस क़ाज़ी ईसा उन 6 जजों में शामिल थे, जिन्होंने फौजी अदालतों की स्थापना का विरोध किया था.
सुप्रीम कोर्ट के पूर्व चीफ़ जस्टिस इफ़्तिख़ार मोहम्मद चौधरी के बाद चीफ़ जस्टिस साक़िब निसार ने सबसे ज़्यादा स्वतः संज्ञान लिए, जस्टिस क़ाज़ी फ़ाएज़ ईसा ने इस कार्रवाई पर आपत्ति की थी.
सुप्रीम कोर्ट के चीफ़ जस्टिस साक़िब निसार के साथ पेशावर में आर्मी पब्लिक स्कूल हमले केस की स्वतः संज्ञान नोटिस की सुनवाई के दौरान उन्होंने कहा था कि सुप्रीम कोर्ट के ह्यूमन राइट्स सेल के पास सीधे कोई अख़्तियार नहीं कि आवेदन को स्व-अधिसूचना में तब्दील किया जाए. उन्होंने आपत्ति की कि आर्टिकल 184 (3) के तहत पहले सुप्रीम कोर्ट का ऑर्डर ज़रूरी है.
इसी सुनवाई के दौरान चीफ़ जस्टिस साक़िब निसार ने अचानक अदालत बर्ख़ास्त कर दी और कुछ देर बाद जब अदालत दुबारा लगी तो बेंच में जस्टिस क़ाज़ी फ़ाएज़ ईसा शामिल नहीं थे.
इन जजों की राय थी कि इन अदालतों की स्थापना न्यायपालिका की आज़ादी और मानव अधिकारों का उल्लंघन है. हालांकि मुस्लिम लीग (एन) की सरकार ने इस फ़ैसले को जीत क़रार दिया था और कहा था कि इन अदालतों की मदद से चरमपंथ का ख़ात्मा किया जाएगा.

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