भारतीय जनता पार्टी अध्यक्ष अमित शाह ने राज्यसभा में राष्ट्रीय
नागरिकता रजिस्टर पर बयान देते हुए कहा है कि उनकी पार्टी में इसे लागू
करने की हिम्मत है.
अमित शाह ने कहा कि 1985 में हुए असम समझौते की आत्मा ही एनआरसी है.
उन्होंने कहा कि राजीव गांधी सरकार ने ये समझौता तो किया लेकिन एनआरसी को लागू नहीं किया.
शाह
ने कहा, "14 अगस्त 1985 को राजीव गांधी ने असम समझौते पर हस्ताक्षर किए और
15 अगस्त को लाल किले से इसकी घोषणा की. क्या था असम समझौते की आत्मा? इस
समझौते की आत्मा ही एनआरसी थी."
उन्होंने कहा, "समझौते में कहा गया
कि अवैध घुसपैठियों को पहचान कर, उनको हमारे सिटीजन रजिस्टर से अलग करके एक
शुद्ध नेशनल सिटीजन रजिस्टर बनाया जाएगा. ये पहल कांग्रेस के प्रधानमंत्री
ने ही की थी. उनमें इसे लागू करने की हिम्मत नहीं थी, हममें हिम्मत है
इसलिए हम इसे लागू करने के लिए निकले हैं."
अमित शाह ने कहा, "इन चालीस लाख लोगों में बांग्लादेशी घुसपैठिए कितने
हैं, आप किसे बचाना चाहते हैं, बंग्लादेशी घुसपैठियों को बचाना चाहते हैं?"
अमित शाह के इस बयान के बाद सदन में ज़ोरदार हंगामा हो गया.
सोमवार को असम में राष्ट्रीय नागिरकता रजिस्टर जारी किया गया है जिसमें 40 लाख से अधिक लोगों के नाम नहीं है.
अब इन लोगों की नागरिकता पर सवाल उठ रहे हैं. रजिस्टर में नाम न होने की वजह से ये लोग भारत के नागरिक नहीं रह जाएंगे.
हालांकि जिन लोगों के नाम रजिस्टर में नहीं है उनके पास अपनी नागरिकता का दावा करने का मौक़ा होगा.
इन 40 लाख लोगों का क्या किया जाएगा इस बारे में भी अभी नीति स्पष्ट नहीं है.
भारत के गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने सोमवार को कहा था जिन लोगों के नाम रजिस्टर में नहीं हैं उन्हें तुरंत देश से नहीं निकाला जाएगा.
राजनाथ सिंह ने ये भी कहा कि उन्हें तुरंत हिरासत में भी नहीं लिया जाएगा.
पूर्वोत्तर राज्य असम की कुल आबादी 3.29 करोड़ है जिसमें से एनआरसी में कुल 2.89 करोड़ लोगों को ही शामिल किया गया है.
यानी 40 लाख लोगों को फिलहाल भारत का नागरिक नहीं माना गया है.
उससे यही आभास मिला कि राष्ट्र की रक्षा करना सरकार का काम नहीं है या ये उसके बस की बात नहीं है, उसके लिए तो ईश्वरीय कृपा चाहिए.
बीजेपी
से जुड़े नेताओं का संकल्प ये था कि देश की सीमाओं से मिट्टी लाई जाएगी, घर-घर से घी माँगा जाएगा, जो घी नहीं दे सकते वे पेटीएम से 11 रुपए दान कर
सकते हैं.
इसके बाद मुग़लिया दौर में बने लाल क़िले में हवन कुंड
बनाकर समिधा डाली जानी थी जिससे राष्ट्र के शत्रुओं का नाश होना था. इस
धार्मिक अनुष्ठान में शामिल होने के लिए आपको बस मिस्ड कॉल देना था. ऐसा
सुंदर प्रावधान किस वेद-पुराण में है?
राष्ट्र रक्षा महायज्ञ की पूजन विधि और महात्म्य आप यहाँ
बीजेपी के पूर्वी दिल्ली के सांसद महेश गिरी ने बीबीसी को बताया था कि
डोकलाम और जम्मू-कश्मीर से मिट्टी लाने के लिए रथ रवाना किए गए हैं.
इस हवन के लिए भारत-चीन सीमा से इंडो-तिब्बतन बॉर्डर पुलिस (आइटीबीपी) की मदद से डोकलाम की मिट्टी लाई जानी थी.
अगर
ईश्वर में आस्था है तो फिर पता नहीं क्यों, देश के प्रधानमंत्री इस हवन की
घोषणा के बाद से चीनी राष्ट्रपति से कई बार बिना किसी एजेंडा के मिल चुके
हैं, शायद हवन की विभूति साथ लेकर जाते रहे हों?
इस यज्ञ की शुरूआत धूम से हुई थी अगर पूर्णाहुति धूम से नहीं हुई तो ये ईश्वर और भक्तों, दोनों के साथ छल है.
मिस्ड कॉल देने वाले ही बता पाएँगे कि उन्हें प्रसाद मिला या नहीं? लोकतंत्र के साथ जो छल हो रहा उसकी बात बाद में करते हैं.
देश में बहुत सारे धार्मिक अनुष्ठान चल रहे हैं, 2019 के चुनाव तक पुण्यकार्यों का सिलसिला और तेज़ होता जाएगा.
देश में आम चुनाव से पहले राजस्थान में विधानसभा चुनाव होने हैं इसलिए वहाँ ईश्वर की गुहार ज्यादा ज़ोर से लगाई जा रही है.
राजस्थान की मुख्यमंत्री जिन्हें उनकी पार्टी के ही लोग 'महारानी' कहते हैं, वे इसका बुरा नहीं मानतीं, कितना बड़प्पन है! वे ख़ुद को कभी राजपूत,
कभी गूजर और कभी हिंदुत्व की सेनानी बताती रही हैं. ईश्वर की अराधना करते
हुए दिखकर वे बहुसंख्यक हिंदू जनता को तुष्ट करने की कोशिश कर रही हैं.
मगर नहीं, इसे तुष्टीकरण कैसे कह सकते हैं? तुष्टीकरण तो सिर्फ़ मुसलमानों का होता है, तुष्टीकरण तो सिर्फ़ काँग्रेस करती है!
टैक्स
देने वाली जनता के ख़र्चे पर राजस्थान के अख़बारों में बड़े-बड़े विज्ञापन छपे हैं कि सावन महीने में सोमवार को राज्य के हर ज़िले में जनकल्याण के लिए रुद्राभिषेक होगा. आयोजक राजस्थान सरकार है, यानी यजमान मुख्यमंत्री
ख़ुद हैं.
जिनके पैसों से ये आयोजन हो रहा वो जनता अख़बार में छपी
तस्वीरें और टीवी देखकर धन्य होगी, आरती लेने के बाद थाली में वोट डाल
देगी. कितनी सुंदर बात है न!
विस्तार से पढ़ सकते हैं.
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